जैसलमेर
जज्बे को सलाम : सैकड़ो का भविष्य सुधारने वाला विषम परिस्थियों में बना व्याख्याता

किताबों को बनाया मित्र,जिले में प्रथम रैंक व राज्य में 262 वीं रैंक के साथ व्याख्याता बने रमेश दैया
जैसलमेर(फतेहगढ़). मेहनत
इतनी खामोशी से करो कि सफलता शोर मचा दे कुछ ऐसा ही करिश्मा जैसलमेर जिले
फतेहगढ़ उपखंड के कोडा गांव के रमेश पुत्र चुतराराम दैया ने किया है। उनकी
संघर्ष भरी कहानी का हर कोई कायल है। उन्होंने जोधपुर की भागदौड़ भरी
जिंदगी में पुस्तक हमेशा साथ रखते हुए लोकल ओटो में जब भी समय मिला, उसका
सदुपयोग किया।राजस्थान लोक सेवा आयोग की व्याख्याता भर्ती परीक्षा-2020 में
राजनीति विज्ञान विषय से राज्य स्तरीय वरीयता सूची में 262 वीं रैंक एवं
जैसलमेर जिले में प्रथम रैंक से अंतिम रूप से चयनित हुए।कोडा निवासी रमेश
दैया पुत्र चुतराराम दैया की मेहनत युवाओं के लिए प्रेरणास्पद है।कठिन
परिस्थितियों में हार नही मानने वाले रमेश दैया ने बचपन से ही विषम आर्थिक
परिस्थितियों के बावजूद लक्ष्य हासिल करने के लिए संघर्ष जारी रखा।उन्होंने
बताया कि पिताजी सिलाई का काम करते थे और हम पांच भाई बहनों में मैं चौथे
नम्बर पर आता हूँ।पढ़ाई के साथ साथ सिलाई का काम करते रहे वही अपनी एम.ए.की
पढ़ाई का खर्च घर-घर ट्यूशन पढाकर निकाला। आर.ए.एस,फर्स्ट ग्रेड,सेकंड
ग्रेड,रिट,ग्रामसेवक,पटवारी सहित कई भर्तियों के परीक्षा देते रहें। लेकिन
उनको सफलता हासिल नहीं हुई। बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और
असफलताओ के बाद भी तैयारी जारी रखी।परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नही होने
के कारण 2010 में जोधपुर जाकर दैय्या क्लासेज संस्थान सेंटर खोला।जहां से
शिक्षा की अलख जगा सैंकड़ो अभ्यार्थियों को पटवार,आर्मी,एयरफोर्स,राजस्थान
पुलिस कांस्टेबल के सलेक्शन में भागीदार बने।प्रथम श्रेणी व्याख्याता-2015 व
ग्रामसेवक भर्ती-2016 में जन्मतिथि की तारीख को लेकर बाहर हो गए फिर भी
हिम्मत नही हारी ओर पढाई का जज्बा जारी रखा।ओर अंततः 2020 में प्रथम श्रेणी
व्याख्याता पद पर अंतिम चयन हो ही गया जो एक लंबे संघर्ष और मेहनत का
नतीजा है।
संघर्ष की कहानी-दैया की जुबानी
दैया
बताते हैं कि प्रथम श्रेणी व्याख्याता-2015 व ग्रामसेवक भर्ती-2016 में
जन्मतिथि कम होने की वजह से बाहर हो गए फिर भी हिम्मत नहीं हारी और लक्ष्य
प्राप्ति के लिए संघर्ष जारी रखा। सफलता के मूल मंत्र लक्ष्य तय करना,
योजना क्रियान्वयन, धैर्य, परिश्रम अपनाए।वे सफलता का श्रेय भगवान,
माता-पिता, गुरुजनों एवं मित्रों को देते हैं।
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