Poetry: ए रब तेरा यह नादान बंदा

ऐ रब तेरा यह बंदा, तुझसे इजाजत लेकर,
तेरे बख़्शे हुनर पर आज गुरूर करना चाहता है
बेनाम सा तेरी बनाई इस दुनिया में,
आज एक पन्ने पर अपना नाम लिखना चाहता है
हज़ारों करोड़ों लोगों के बीच,
एक आम इंसान बन, सबसे कुछ कहना चाहता है
उम्मीद का एक चराग लेकर,
मेहनत की दो रोटी खाकर, अपनी यह जिंदगी सुकून से जीना चाहता है
गुनाह-ए-अजीम कर पिंजरे में कैद है,
माफी की दरख्वास्त कर, अब पंख फैलाकर उड़ना चाहता है
ठोकर खाकर वो सम्भल चुका,
ना दुबारा वो गलती दोहराना चाहता है
हकीक़त से रुबरु होकर,
आने वाले पलों को, अपनी बाहें फैलाकर अपनाना चाहता है
ए रब तेरा यह नादान बंदा, तुझसे इजाजत लेकर,
तेरे बख्शे हुनर पर आज गुरूर करना चाहता है
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