Poetry: "नानाजी - मेरी प्रेरणा"


सोच रही थी आज जब बारे में तुम्हारे,
तो जी उठी एक बार फिर तुम्हारी यादों में |
पलक झपकी तो लगा यूँ कि तुम आवाज़ दोगे ,
पर थम गई हँसी मेरी जब एहसास हुआ कि तुम तो हो ही नहीं|
दर्द - सा महसूस हो रहा है सीने में आज ,
जाने किसको ज़ाहिर करूँ में ये बात |
कमज़ोर नहीं हूँ , ना हालातों से हार मानी है|
पर हर वक्त हर हालात में , खल्ती कमी तुम्हारी है |
सोचा कि रो कर मन को हलका कर लूँ ,
पर अब तो आँसू भी आँखों में सूख चुके हैं|
जानती हूं , ज़िद है यह नासमझ बच्चे की तरह,
पर तोहफा एक मांगू तो क्या तुम दे पाओगे?
क्या सिर्फ एक बार मुझे गले लगाने वापस आ पाओगे?
लगकर तुम्हारे सीने - से जी भर कर रोने की इजाज़त दे पाओगे?
एक बार बस एक बार वापस लौट आओ,
मिलकर तुमसे दुनिया भर की बातें करनी है,
गले तुम्हारे लगकर तुमसे तुम्हारी ही शिकायतें करनी है।
वत्सला गौड़
उदयपुर ( राज.)

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