सुनील सिरवैया: लेखनी के जादूगर, सिनेमा के सच्चे दृष्टा
गीतकार और लेखक सुनील सिरवैया ने सिनेमा, संगीत और विज्ञापन में अपनी रचनात्मक छाप छोड़ी।

मुंबई (अनिल बेदाग): भारतीय सिनेमा की रचनात्मक आत्मा में अगर किसी नाम की गूंज होती है, तो वह है सुनील सिरवैया। एक ऐसा नाम जो न केवल पटकथाओं और गीतों में जान फूंकता है, बल्कि भावनाओं को शब्दों में ढालने की कला में भी निष्णात है।
झांसी से मुंबई तक की प्रेरणादायक यात्रा
उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के छोटे से गांव बिजना से निकलकर मायानगरी मुंबई में अपने सपनों को साकार करने वाले सुनील सिरवैया की कहानी खुद एक सिनेमा जैसी लगती है। संगीत उन्हें विरासत में मिला — पिता गौरीशंकर सिरवैया प्रतिष्ठित शास्त्रीय संगीत उस्ताद रहे, और मां कमलेश सिरवैया ने उनकी संवेदनशीलता को आकार दिया।
किरदारों को आत्मा देने वाला पटकथा लेखक
सुनील की लेखनी की सबसे बड़ी खासियत है उनकी कहानियों की भावनात्मक गहराई। फिल्म “जीनियस” में जहां रोमांच और इमोशन्स का मेल था, वहीं “वनवास” जैसी फिल्म में उन्होंने मानवीय रिश्तों को बेहद संवेदनशीलता से दर्शाया। उनकी यही प्रतिभा उन्हें Zee Cine Awards 2025 में सर्वश्रेष्ठ कहानीकार का सम्मान दिलाने में सफल रही।
गीतों में संवेदना, शब्दों में आत्मा
एक गीतकार के रूप में सुनील सिरवैया ने फ़िल्म संगीत को एक नई ऊँचाई दी है। “गदर 2”, “ब्लू माउंटेन्स”, “यारा”, “आई एम सिंह”, और “बाबा ब्लैक शीप” जैसे प्रोजेक्ट्स में उनकी लेखनी ने गानों को जज़्बातों से भर दिया। उनके गीत सिर्फ़ सुरों में नहीं, संवेदनाओं में गूंजते हैं।
विज्ञापन की दुनिया में भी अद्वितीय पहचान
सिर्फ फिल्मों में ही नहीं, सुनील ने कॉपीराइटिंग और क्रिएटिव डायरेक्शन में भी अपना लोहा मनवाया है। कई प्रमुख विज्ञापन कैंपेन और जिंगल्स के पीछे वही रचनात्मक दिमाग है। सीमित शब्दों में गहरी बात कहना उनकी विशिष्टता है।
विरासत जो प्रेरणा बनेगी
बिजना की गलियों से मुंबई के स्टूडियो तक का सफर सुनील सिरवैया की व्यक्तिगत यात्रा भर नहीं, बल्कि हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो रचनात्मकता को अपना जीवन बनाना चाहता है। वे सिर्फ एक लेखक नहीं, रचनात्मक संस्कृति के वाहक हैं।